|| दहेजक पीडा ||

भोरके सुरजक लाली सन ओ माथक सेनुर आ मृगनैनी सन आँखिमे काजर कएने
ललका बिन्दिया आ
ललके ठोरङा सँ ठोर रंङने पायल छमकाबैत जखन
ससुराल मे दाहिना डेग अपना साजन के द्वार पर रखलैन तऽ
घरमे लक्षमी सन पुतौह देखि
मन हर्सित भेल ससुर
भरिगाँउमे भोज खुआ खुसी सँ
नाचिरहल छलाह।

एम्हर :
हरिण सन चलचलाइत चाइल पकरने साउस
ओकर सुरत नहि निहारैत
ब्यस्त छथि: दहेजक समान खोजैमे
एहि घर सँ ओहि घर कुदैत, कहैत छथि-
"बाप रे एहन कहु भेल ?
किछु नहि देलक हमरा बेटाके ससुरारिमे,
खालिहाथ कनियाके
बिदाह कऽ देलकै धोछियहबा किछ जुरलै नहि देब खातिर ओई भीखमङा कें?

एत,
मोम सन पिघलैत ओकर मन अपना बापक
हिम्ताइ आ बुराइ सहैत, सिहकैत बस नोरेटा बहाबिरहल छलीह आ सोचैत छलीह
आखिर किय, कोनो बेटिके आपन ससुरामे
दहेजक खातिर अपना माइ बाबुजीक बेइज्जत
सह पडैत अछि ?
मुदा अओअन मोनके सम्झबैत आस लगौने छली अपन प्राणनाथ पर।
विश्वासक टेमी देखाइत छलै ओकरा अपन पतिमे।

मुदा, अपसोच -
अखारक ठन्का सन ठन्कैत आ लौका सन लौकैत
साउस जखन टुटि परलै ओकरा उपर आ
दु:ख देबाक शुरु कऽ देलकै निरन्तर
तखन सात फेरा लेने
माथमे सेनुर देने
जेकरालेल साओनक सबटा सोमबारी कएने
आ अपना हृदय सँ पति मानिचुकल ओकर सजना
कोनाक'
अप्पन माई कऽ एकतर्फी बात सुनि घर छोडी चली जाइत अछि ओकरा आँखि सँ दुर!

आब तऽ,
गोइठाक आगि सन जरैत ओ, नित दिन कुहकैत आ
कनैत दिन बितारहल छै
अपना साजन के आशमे
आइ महिनो सालो बितिगेल,
मुदा, ने कोनो चिठ्ठी आ नहिए कोनो सन्देसा एलै।

एक तऽ पानि बिनु छटपटा रहल मछरी नाहित अपना
सजना केर याद, आ ताहिपर साउसक मारिपिटक दुख:
दर्द सहिरहल आइ सलाइयक काठी सन शरीर बनौने
चिन्ता सँ सौसे देह गलिगेल अछि ।

आइ साँझक बखत:
एतेक अन्याय करैत चंडाल सन कसाइ बनल
साउस आइ अन्तिम सिमा मे पहुच मटियातेल छिटी
आगिलगा मारिदैत छैत, आखिर एह छै लिखल
बेटिके सौसरामे, आखिर सभ के त बेटि अछि आ
दोसर के घर मे जाओत मुदा दहेजक लालची लोक
एखनो एहि दुनिया मे नकाब लगौने घुमिरहल
आ दु:ख दरूना दऽ आगि लगा जराक मारिदैत अछि !!
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__.✍ दिनेश कुमार राम 
सुगा मधुकरही - ६ धनुषा,
हाल : दोहा कतर

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