गज़ल ~ गुलाब चाही ओकरा

आँखिसँ पुछतै ठोरसँ जबाब चाही ओकरा
हमर प्राण समर्पित छै गुलाब चाही ओकरा

तऽ खोलि देलियै आइ हृदयक एकहक पन्ना
आखर मोन रखबा लय किताब चाही ओकरा

मास फागुन मातल छी प्रीतक निशामे हम
उकबा उठाबैए लोक शराब चाही ओकरा

साँसक कनमा कनमा उसरगि देलियै मगनीमे
तोहीं पुछही नऽ आर की आब चाही ओकरा

एखनुकासँ ब्रेकपक' मूव आॅन करतै जहिया
पुछबै अहाँ हमरा सन खराब चाही ओकरा
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