गज़ल - रौ मिता, रौ संगी, हेरौ यार

रौ मिता, रौ संगी, हेरौ यार !
स्वार्थबिना दुनिया छै बेकार !!

झुठेके बिया बुनि, झुठेके करे खेती ! 
दुनिया त छी झुठ - फुस के व्यपार !!

क्षणभरिमें बाज़ी मारिलै, पत्तो नै होय ! 
जेना चलाक नढ़िया निकलै धारे - धार !!

ऐ कोठी के चाउर, करे ओइ कोठीमें !
रामवरण - प्रचण्डक लीला अपार !!

आहिंरो बा, देखही कोई बिना खेने मरै ! 
कोई खाईत - खाईत करै ढेकार !!

हिमालिये - पहाड़िये के राज चले सगठे !
कह मधेशी के किए नै भेटै अधिकार !!

रौ के बुझतै बनिक बिच्छु !
जनताके खुन चुसैय जाली सरकार !!
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