गज़ल - कहिया तक जिबा हो भैया डरि-डरि के !!

कहिया तक जिबा हो भैया डरि-डरि के !
किया तू जी रहल छा एना मरि-मरि के !!

आदर सम्मान सब छीन लेलको तोहर !
बिहुसल आँखि तोहर कानि-कानि के !!

सगठे अपमान सब करैत छो तोरा !
तखनो तू चुप छा साधु बनि-बनि के !!

अप्पन मसीहाकऽ पहिचानि नै रहल छा !
जे लैड़ रहल छो अखनो हारि-हारि के !!

अप्पन अधिकारक लेल आवाज़ उठाबा तू !
कहिया तक रहबा तू चुप रहि-रहि के !!

लेखक : एस के मैथिल
जनकपुर धाम, धनुषा ( नेपाल )
हाल : मुम्बई