गज़ल - आङ्गुर पर नचा रहल य गरिबी

आङ्गुर पर नचा रहल य गरिबी
बहुत चीज सिखा रहल य गरिबी॥

आन्हर बनि जिवैत रहलौ सदित,
आँखि आइ खोला रहल य गरिबी॥

दुखक पहाड़ टुटि गिरल छातीपे,
हकनि नोर कना रहल य गरिबी॥

जानि नै छी कते'क अभागल हम,
खुब नजैर लगा रहल य गरिबी॥

क्षमता सँ बेसी कनिको नै सोचु,
विद्यानन्दके बता रहल य गरिबी॥
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