|| बर्वादिक' राति ||

कानि उठल ई धरती आश्मान ,
भगवानक' अजीब लीला देखिकऽ !
जिनका भगवान मानैत छल सब ,
चलि गेल सबके अकेला छोड़िक' !!

किया आइल ई बर्वादिक राति ,
सभक' हृदय याह् कहैत छल !
खुनमें लतपत उ वीर - विधाता ,
माई के एक नज़र देख चाहैत छल 
!!

धरती माई के आन बचेबाक लेल ,
अकेला उ वीर रणमें खड़ा छल !
कानि पड़ल धरती माई के बारेमें सोचिक' ,
तऽ आँखिसँ नोर नै सोनितक' धार बहैत छल !!

बन्ज़र भऽ गेल छल ई ज़मीन ,
चन्द्र - सूर्य, हावा - पानि रुकि गेल !
पिघैलक' गिरल जखन सगरमाथा ,
इतिहासक' पन्ना पलैट गेल !!

अधर्म देखिक' धर्म संकटमें पड़ि गेल ,
टुक्रा - टुक्रा भऽ गेल देशक' स्वाभिमान !
ई आतंकारी सभक' आतंक मिटेबाक लेल ,
कहिया आइत फिर सँ ई धरती पर भगवान !!