|| महराज ! ऐना किय ? ||

महराज !
हम
अहिठाम खेलैत छलौं,
हम
अहिठाम,
शान्तिके गुण गबैत छलौं ।
क्रन्ति कि होईत अछी ?
अर्थो नहिं बुझैत छलौं ।।

महराज !
पगलैत बर्फ किय,
कठोर भगेल अछि ?
बहैत पानी किय ,
रुकि गेल अछि ?
किय - किय
अपना दरवजो पऽ,
शान्ति महशुश नहिं भरहल अछि ?

महराज !
आखिंके
रोशनी कम भऽ गेल कि ?
यदास
कम भऽ गेल ?
बिसरी गेलियै अहाँ ?
हमरा उपलब्धिककें
कत बेच देलियै ?
प्रजातान्त्रिक के अर्थ
कोन बैग मे नुका लेलिऐ ?

महराज !
ऐहे
दिन देखला हम
अनचिन्हार भेल छलौं ?
याद अछि अपने के ?
अहाँके बारीमे निमके पता
खाऽ कऽ
हम हर जोतैत छलौं ।
50 किलोकें
फार लऽकऽ
छाती
चिरि दैत छलियै
दिय - दिय हमर कमाई
जोखि' कऽ नै
हाथ उठाक दिय
मुदा हमर हक़ बमोजी ।।

महराज !
छनिके सहि
स्वतन्त्रता के
अनुभव करैत छलौं
पुनः किय टायर जराब पर
मजबुर कदेलौं ।।
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