गज़ल ~ मित्रताके हाथ कनिक

मित्रताके हाथ कनिक, नरम हेबाक चाही !
आपतिमे हाथ कनिक, गरम हेबाक चाही !!

पापी मन मात्र पाप, सोंचिते रहि' जायत छै !
पापियोमे कहियो काल, धरम हेबाक चाही !!

असल मित्रके मात्र गपेटा नै, व्यबहार आ !
दु:खमे सहयोगी सन, करम हेबाक चाही !!

दु गो आत्माकें मित्रतामे, भरत सन भाइ आ !
प्रभु ! श्री रामचन्द्र जेहन, चरण हेबाक चाही !!

धनेश्वरकें इ हाथ अछि अगा, मित्रता लेल !
बस अहाँमें नै कनिको, भरम हेबाक चाही !!
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