|| बस अहीँ तऽ छी ||

भोरे उठिते
जकर चेहरा
पसरि जाइय
हमरा आँखिमे ।
सुरुजक लालीसंगे
जकर मुस्कान
करैए टहटह
हमर ठोर पऽ
ओ दोसर के छै ?
बस अहीँ त छी ।
हमर जिनगी
एकटा चौरा
जाँहिमे रोपल
एकटा तुलसी,
हमर भीतर
एकटा दिल
जाँहिमे धडकय
एकटा धडकन
ओ तुलसी
ओ धडकन
दोसर के छै ?
बस अहीँ तऽ छी ।
चलैए सास
जकरा ला हरपल
होइय खास
जकरा ला नित दिन
जे छथि हमर
मधुरम गीत
लागल जकरासँ
जीवनभरि प्रीत
ओ दोसर के छै ?
बस अहीँ तऽ छी ।
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