गज़ल ~ हमहुँ अमिर बनबै

रे भाइ एक  दिन  हमहुँ अमिर  बनबै
अपना जिनगी`के अपने तकदिर बनबै

भल्ही छि हम  दुःखक रड जका फेकल
धधकैत आगिमे पिघला कऽ जन्जिर बनबै

असहाए के सहयोग कऽ झोली भरबै
दान कऽ मुरत सँ सजल मन्दिर बनबै

बुन-बुन चुकेबै माएक दूध केर कर्जा
अप्पन  सपत  तेहने  हम वीर  बनबै

मनके महलमे सजाक रखबै इ सपना
इतिहास कऽ पन्ना मे ओ तस्बिर बनबै 

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__.✍ रमेश प्रसाद यादव 
स्थान : सिरसिया - ५, धनुषा (नेपाल)
हाल : दोहा, क़तर 

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