|| अभिशाप ||

कोन बसात बहलै सब किछु
उड़िया लऽ गेलै
दैवा हमर जिनगीक खुशी
क्षणहि उड़ा लऽ गेलै ।

बैसल कानि' रहल छी
अप्पन दुर्दशा देख रहल छी
नेह चिरई के हमरा सँ बेदर्द
जमाना छीन लऽ गेलै ।

सुनै छलियै अनेर गाय के
राम रखबार होई छथि
बसैल हमर दुनियाँ तऽ
तकदीरे तबाह कऽ गेलै ।

सुखतै नै हमर आँखिक नोर
गँगा जेका बहिते रहतै
सब सौउख सेहँता के अप्पन
धार में भसिया लऽ गेलै।

पाथर के देव छी पाथरे जेका
छातीयो अछि अहाँ के
निर्दयी अछि माया अहाँक
जिबऽ के सहारा लऽ गेलै ।

असगर जिबऽ के कोन अर्थ
रहि गेल अछि आब यौ
ई पहाड़ सन जिनगी काटय के
अभिशाप दऽ गेलै ।
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