नहिं ऐलै राति निन्द बस लिखैत गेलहुँ
अपन दर्द कागज पऽ निखारैत गेलहुँ
रही जमिनपऽ कोना छुब सकब अकाश
बस तरेग्न बिच, चाँन्द निहारैत गेलहुँ
कमजोर रहिती तऽ कहिया टूटि जैतहुँ
छी नरम ठाँरि सभ आगु झुकैत गेलहुँ
ओ जहिना-जहिना बदलैत गेलै रसता
हम इ जीनगीकें ओहिना पिसैत गेलहुँ
आयल अशोककें जीनगीमे हावा बनिक
ओंहे आँन्धिस्ँ हम जीनगी सिखैत गेलहुँ
सरल वार्णिक बहर - १६
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अपन दर्द कागज पऽ निखारैत गेलहुँ
रही जमिनपऽ कोना छुब सकब अकाश
बस तरेग्न बिच, चाँन्द निहारैत गेलहुँ
कमजोर रहिती तऽ कहिया टूटि जैतहुँ
छी नरम ठाँरि सभ आगु झुकैत गेलहुँ
ओ जहिना-जहिना बदलैत गेलै रसता
हम इ जीनगीकें ओहिना पिसैत गेलहुँ
आयल अशोककें जीनगीमे हावा बनिक
ओंहे आँन्धिस्ँ हम जीनगी सिखैत गेलहुँ
सरल वार्णिक बहर - १६
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