गेलौं अहाँ छोडि के
संगे रहितौं तऽ बियर पियैबती
ओठलाली से गिलास भरि के
उराबै छलै रंग संगे सखिहो सहेली
हम छलौं घरमे बैठल एकेले
मिथिलामे रंग बरसै छल
देखी-देखी कऽ मोन तरसै छल
अंग-अंग रंग लगेबतौं पिया
प्रेम रंगमे घोरि के
घरे रहितै तऽ होली मनैबतैं
ओठलाली से गिलास भरि के
कहियासँ हमरा लागल छलै अशा
नितदिन मोनमे फुटैत छल बतासा
घरे अबियौ हमर राजा यौ
फगुवामे ललि माजा यौ
टुटल हमर मोन जोडि' दिय अहाँ फेर सँ
घरे रहितै तऽ बियर पियैबती
ओठलाली से गिलास भरि के
उदगारसे कही हम मोनक बात
रमेश अंईठैत छलै गोर-गोर गाल
जेकर सईयाँ बनतै सुनिल यौ
ओकर होतै ओहे दुरगती यौ
रुकतै नै आब ललित दिवाना
बियर बोतल खोलतै जोर से
घरे रहितै तऽ पुवा-पुरी खैतैई
ओठलाली मे हमरा बोरि के
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