गज़ल ~ देह सँ देह सटिते

देह  सँ  देह  सटिते , देह   इनहोर  भऽ गेलै
राति पडल छलै भारी, चटसँ भोर  भऽ गेलै

बड अजगुत  लागल, चारु  नयनक  भाषा
मिलते चारु अन्हारीया, राति इजोर भऽ गेलै

कैनका ओहो घुसकलै, कैनका हमहुँ गेलौं
लग अबिते दुनुगोटामे, झिका झोर भऽ गेलै

कत  बिसतर  फेकलै, कऽत  तकीया हेरैलै
टुटिते  मनक  संन्की, दर्द  पोरे पोर भऽ गेलै

चान  उगलै  नइ, किए अमबसीया रातिमे ?
छलै  हमरा  लऽ जैनते, लोकमे सोर भऽ गेलै
सरल वार्णिक -१७
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