कथा - आसे आसमें जिनगी


ठण्डाके मौसम, ताहिपरसँ रातिकऽ समय चारुदिस धोनही लागल कान -कान नै सुझय ते सबगोटे सबेरे खाना खाऽक अपना - अपना बेडपर ओङ्गठल। सन्तोषबा सेहो तुरन्ते अपना बेडपर ओङ्गठले रहय की फोनकऽ घण्टी बजलै टिङ्ग - टिङ्ग। सन्तोष समय देखलक रातिकऽ ९ माने नेपालमें १२ बजे राति। कि भेलैक ? अते रातिकऽ मिसकल किय ? सन्तोष असमन्जसमें पडिगेल। 

आ कि फेर बजलै घण्टी टिङ्ग - टिङ्ग सन्तोष तुरन्त फोन कयलक, फोन उठलै, कोनो कनियाँ बाजल…

कनियाँ : हेल्लो केन छी ? ठीक छी ने ? हमरा तऽ बिसरिए गेलियै नहि ?

(सन्तोष बुझिगेल ओ आरो कियो नै ओकरे अर्धङ्गनी " बबिता " छलीह।)

सन्तोष : ह हम तऽठीके छी। अहाँ कोना छी कहु ने ? नहि - नहि कोना बिसरि जाएब। केहन बात करैत छी अच्छा कहु ने की भेल ? अते रातिकऽ किय फोन केलहुँ। (एके साँसमें सन्तोष पुछलक)

बबिता : अहाँके तऽ हमरा पर कनिको मए, स्नेह नै अछि।  जँ से रहित तऽ आते दिन भऽ गेल घर नहि अबितहु ? देखियौ तऽ लालनगरबाली दिदीके ताबत भाईजी आबिकऽ फेर चलि गेलथि आ फेरो देहमें ईगो बौवा छैक। मुदा हमरा, हमरा तऽ टोलोमें सबकोई ताना मारैय आ भगवानो हमरे पर लागल अछि। ओहि जनममें कोन धार - बिगार केने रहियै से नहि जानि।

सन्तोष : " ठीक छै - ठीक छै बबिता हे सुनु नऽ, आब कनिए ऋण तिरके बाकी रहिगेल अछि बुचिके बियाहक। अहाँ धिरज धरु ने हम जल्दिए लौट आएब " (एहसब कहिते की फोन बजलै टु टु माने पैसा सैठ गेलै मोबाइलके, मुदा बातो पूरा नै भेलै।)

(तखन सन्तोष सोचैय ३ साल पहिने शादीके ६ महिना बाद जे कतार आएल रहे से गप !)

साच्चे देखिते - देखिते कते दिन भऽ गेलै। तखन सम्झना एलै जे बबिता गर्भवती रहै से बच्चा गर्भेमें नोकसान भऽ गेलै आ तहियास ने सन्तोष घरे गेलैय आ ने बबिताके दोसर बौवा भेलैय। अप्पन कर्जा, घरकऽ कर्जा, बहिनकऽ बियाहमें लेल गेल कर्जा। एहसबके ऋण तिरैत - तिरैत एखन धरि बित गेलै आ नैजानि आरो कते दिन बित जेतै !

एम्हर आसे आसमें सन्तोष के जिनगी आ ओम्हर ओकर धर्मपत्नी बबिता के जिनगी।