|| परदेशी मनक' भावना ||

बिगत दू साल सँ
सात समुन्दर पार
ई मरुभूमिकऽ देश में
अपन श्रम बेच रहल हम
आइ हमरा घर जेबाक
समय पूरा भऽ गेल
मुदा -
तैयो मोन पूर्ण सन्तुष्टि नै अछि
खटकैत रहैय हर छन
मन मस्तिष्क में बस
एकहिटा बात
की कही
ई दू साल के अंतराल में
हमरा सब केओ
बिसरा तऽ नै गेल हेतै
मोह माया हमरा सँ
तेज तऽ नै लेने हेतै
अपन प्रेम-स्नेह सँ
बन्चित तऽ नै कऽ देने हेतै
इएह सोचि-सोचि आइ-काल्हि
हमर ई मोन बहुते
निरास रहैय।
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