|| मोहनी मुस्कान ||

सँच्चमे
अहाँक

मोहनी मुस्कानके
बुझिए नै
सकलहुँ।
केहेन पागल
छलहुँ जे
अन्दाजा तक
लगा नै
सकलहुँ।
आखिरमे
प्राकृतिक छल
या बनावटी?
जे छल
जेना छल
हम ओह्या देखिके
जीव लैत छलहुँ।
ओह्या मुस्कान तऽ
अनने छलै
पत्झर जीवनमे
बसन्त बहार।
आब तऽ
अहाँक
ओहो
मुस्कानरूपी तारा
जीवन रूपी गगन सँ
बिला गेलै

भगेलै जीवनमे
चहुँओर
झलमल अन्हार।
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