|| प्रित ||

ओहे,
कमला नदिके बाँध,
ओहे,
गामक पिपलकें छैयाँ ।
मनतँ हमर,
अँहिमे डुबल,
अहाँ भेलौ केहन कसैया ?।।
हम
अखनो अहाँकें,
ओहिठाम,
इन्तजार करै छि ।
जै बागमे
छोडिगेल छलौं
घुमीचलि आउ प्रीय,
हम,
अखनो अहाँसँ प्रेम करि छी ।।
बिस्की,
महुवा,
रम सभ छोडौलि
अहाँ जिनगिमे आबिकऽ ।
जिनगी,
जिबाक सिखा देलौं
मुदा,
कहाँ चलिगेलौं मन तोडिक ।।
मनक बाग
सुना-सुना लगैय,
अहाँ बिनु
दिन राती,
एक सम्मान लागैय ।
कसुर हमर,
ऐतवेटा छल कि,
हम गरिब छलौँ
आब,
गरिबियो जिनगी
जियलँ पहाड लगैय ।।
चली आउ प्रीय
भरी दिय,
सुना संसारकें
हरिया दिय
सुखल मनकें
आबिजाउ अखनो
हम अहाँ सँ
ओतबे प्यार करै छी ।
बिछडले ठाम
हम अहाँक
ईन्तजार करै छी ।।
आबि जाउ प्रीय
अखनो अहाँ सँ
हम बहुत
प्यार करै छी ।।
______________________________________________