गज़ल ~ राखी लेने बहीन


सुतलामे देखलौं, आई ऐहन सपना
राखी लेने बहीन, ठाड छलै अंगना

निपल पोतल छलै, घर आ असोरा
पिढिया पऽ गढल छलै, पिठारक' छपना

काग कुचरैत छलै, आश बढैत छलै
बाट जोहैत छलै, दुरुखी पऽ बहना

हमहुँ बैठी गेलियै ओ पिढिया पऽ जा'कऽ
लडु खुवा बहीन कर लगलै बंदना

हाथ जौं बढाबए ला कैलियै, राखी दिस
खुली गेलै निन्द आ, बह लगलै नयना
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