लघु कथा ~ सेनुर

                                   __✍ आरती झा 

आइ रधिया माय समयसँ पहिने आबि गेल छल काज करय । कारण पुछलहुँ तऽ बड्ड हुलसि के' बाजल, "मलिकाइन, आइ रधिया के देखा-सुनि हइ" हलुमान मंडील मे तऽ सोचली जे हाली-हाली सबटा काम नेपटा ली । इ बात सुनिते आँखि के आगूमे नान्हिटा बारह-तेरह बरखक' रधिया के मुँह आबिते जेना मोन लोहछि गेल। कहलहुँ, इ की करैत छैं रधिया माय।ओकर अखन खाय-खेलाय के दिन छै।एहन कांच उमेर मे किया ओकरा खाधिमे धकेल रहल छै?
की करब मलिकाइन, अहा के त' सब बात बुझले है।ओकर बाप के दारु पियै से फुरसते नहि हइ आ हमही असगर कतेक करब? हमरो बेमारी कहाँ छूटय बला हइ।जीता-जिनगी ओकर माँगमे सेनुर देख लेब त' संतोष हैत।
दोसर दिन रधिया माय संगमे रधिया के सेहो ल' के' आयल छल। मुँह ख़ुशी सँ चमकि रहल छल रधिया माय के।बाजल, "असिरबाद दियौ मलकाइन छौड़ी के"।सब बात तय हो गेल।डिल्ली मे कमाइ हइ मंसा।पहिलुकी बहू मरल हइ।दू गो ननकीरबा-ननक़ीरबी हइ ओइ घर से।पाइ सबटा उहे खर्चा करत। एक्को गो पाइ हमरा नहि लागत।रधिया के बाप देख आयल हइ, पक्का के कोठली हइ आ ज़मीन जथा सेहो काम चलाउ। हमर रधिया के त' भाग हइ जे ओइसन घर मिलल।खाइ के कोनो दिकदारी नहि होइत उहाँ। माथ जेना सुन्न भ' गेल ओकर बात सुनि। गरीबी केहन बड़का अभिशाप अछि।दू कौर भोजनक आगू कि नै सुझा रहल अछि रधिया माय के रधियासँ तीन गुणा उमेरक आदमीसँ ओकर बियाह? ओकर दमित-अदमित इच्छा के कोनो मोल नहि? बरद जकाँ बान्हि देल जायत खुट्टासँ?

रधिया के सांत्वना दी कि आशीर्वाद से नहि फुरायल......