गज़ल ~ रहि-रहि कऽ बाट हम ताकी

रहि-रहि क बाट हम ताकी,
राखी सँ सजा रखने छि थारी !!

जखन अबै अहि गली में गाड़ी,
खिड़की सँ चटहि हुलकी मारी !!

नैहर सँ भेजतै माइयो सनेश,
भौजी भेजथिन फेर सँ साड़ी !!

जखन औथिन राजा भैया हमर,
बन्हबैं हुनका हाथ पर हम राखी !!

आसन बिछा फेर भोजन करेबैन,
माँछ भात आर तरुवा तरकारी !!
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__✍ बिजय कुमार झा
देवडीहा, नगराइन धनुषा (नेपाल)