|| अखारक महिना, पियाक सन्देसा ||

बर्खा-बर्खा, चारुदिस बर्खा,
आएल अखारक महिना यौ !!
बारिए झारिए बेङ कुहकैए,
होइये दिनभर बर्खा यौ !!

एह छै अखारक महिना यौ साजन,
आबैय अहाँक बहुत याद यौ !
कहिया आएब अहाँ घर आँगन मे,
नितदिन बाट जोहैछी यौ !!

घर सँ गेला एतेक दिन बितल,
चिठ्ठी नै कोनो सन्देसा यौ !
अखारक महिना अहाँक याद,
लगैय बिरहा सन दुखियारी यौ !!

अहाँक यादमे दिनभर कानैछी,
कहिया घर अहाँ आएब यौ !!
अरोसी-परोसी सब केउ आएल,
अहाँ कहिया दिन जुराएब यौ !!

चारूदिस पसरल धानक बिच्छन,
कहिया रोपनी होएत यौ !
खेती किसानी नै करब तऽ
कोना क सालभर खाएब यौ !!
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__.✍ दिनेश कुमार राम 
सुगा मधुकरही - ६ धनुषा,
हाल : दोहा कतार