गज़ल ~ सुनऽ हाे भैया

आशा के दीप जरत जखन
अन्हार भागि जएबे करतै

दिन बदलतै राति ढलतै
नवका भाेर हाेएबे करतै ।

जा धरि नहिं मंजिल भेटतै
 लडैत रहबै मरैत रहबै

कतबाे कांट भरल वाट में
रुकबै नहिं चलिते रहबै ।
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__✍ पूनम झा मैथिल 
जनकपुर धाम (नेपाल)