|| रौदी ||

खेत जरिगेल
अकाश सुखिगेल,
सुखिगेल कुँवाक पानि,
कलक पानि गरम
बनिगेल, बनिगेल
जमिन पाथर

बर्षाक एकहु बुन्द
नई गिरल,
सुखिगेल नदीक पानि,
खेत खरियान सब कुछ
जरिगेल, पानिक बुन्द
निचा नई गिरल।

लगैय आब प्रलय आबिगेल
गाइ महिस छटपटा मरैय,
किसानक दुख भारी बुझाइय
एक एक बुन्द पानि जम्मा करैय।

रौदिक चपेट मे
लोक कानिरहल अछि,
माथक बोझ उठा रहल अछि,
सुक्खा मरूवाक रोटि खा
अपन जिनगी काटिरहल अछि।

इ केहन बिधाताक
जिनगी बनाओल
होकासी पारि सब
कानिरहल अछि,
ओह दिन मे अन्न हम फेकलौं
देखिते आब सिहन्ता लगैत अछि।

कनैत कुहकैत
चिच्यारहल्छि
केहन दिन आबि परल,
ममताक नोर लऽ माई हमर
दुलार सँ हमरा उठाबि रहल अछि,
निन्द टुटल देखैछी
सपना एहन
कोन जुगमे
गेल छलौँ हम,
कोन जुगमे अखन छि। 
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