गज़ल ~ हेहर

ताराक बूनका रातुक सियाही चान एसगर कते छै
सोचू किए हम लोक ओम्हर कते छै एम्हर कते छै

छोड़ि चतुरंगिनी सेना पार्थ मांगि लेलकै जे केशव
जीति सकलै की कौरव धूआ साँचक नम्हर कते छै

सिनूर परने मन-प्राण भ' जेतै की दाखिल-खारिज
कहतै साँसक अबरजात हमर कते अनकर कते छै

ओ खखरी बुझय हमरा जेना आओंसक' उरा देत
आबौक बिहारि देखबै हल्लुक कते भरिगर कते छै

अपन शोणित जरा हम  बीत आखरक अरजलहुँ
पुछै छी हमरा किताब पातर कते मोटगर कते छै

जकरा छै जिबाक हिस्सक ओ मरतैक की बाते
उठै छै उठै छै खसै छै उठै छै इस्स हेहर कते छै
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