|| मिथिला परिक्रमा ||

अपना अस्थाके
निरंतरता दऽ रहल छै मैथिल
अही प्रकारे जेना बर्षेनी बहैत
नदिके पानि'
जे शुरुवाती छोडसँ महासागर तक
बहैत रहैय अटुट भऽ
विज्ञानके निक जकाँ
परिभाषित करबला अहाँ सन लोक
जखन देखाइय अही अस्थाक डोरमे
बन्हाक
अकासमे आस्थाके इन्द्रेणी उगबैत
तखन सहजे मुहस्ँ निकैल जाइय
वाह....रे मैथिल, वाह... मिथिला

भऽ जाइय हमर करेजा सुप्पा जकाँ
भऽ जाइय छी हम अक-बक
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