|| हे हमर वसंत ||

जाड़क अलसाएल भोरमे
माघक घनघोर कुहेस सन
हमर मन-मिजाज मे
पसरि गेल छी अहाँ

बाबाक सझिया खेतक
एक पैरिया आरि पर जन्मल
हरियाएल कोमल दूभि पर
जमकल ओसक बुन्न
मखमलक ओछाओन बिछौने अछि अहाँ लेल
की ओहि पर बैसिक'
कहियो तऽ बात करब हमरा संग अहाँँ

फूलाएल पियर सरिसो
लजा गेल अछि एक बेर फेर
अहाँक पारदर्शी
लाल आ आसमानी चुनरीमे
उमंगक नवका रंग
जे भरबाक अछि ओकरा
की लोढ़' नहि चाहब
एहि रंग के
अपन आँचरमे अहाँ

गहूमक छोटकी बालि
घोघ सम्हारैत बाट हेर' लागल अछि अहाँँक
की कहिया आबिक'
ओकरा दुलार कएल करबैक अहाँँ

उगैत सुरुज अनुखन
अपन किरण बिखेरब प्रारंभ कएने अछि
स्वर्णिम आभा ओकर
क'र' चाहि रहल अछि
अहाँँक माथक श्रृंगार
की एहि अभिसार लेल
उताहुल नहि छी अहाँँ
मजराएल आम गाछक
सरसराइत शीतल बसात
नित्तहु भोरे-भोर हमरासँ चौल करैत अछि
आ कहैत अछि हमर कानमे नहुए सँ
अहाँक अयबाक समाद
तखन, हे हमर वसंत!
आब त' कहि दिअ
कहिया आबि रहल छी
हमरासँ प्रेम करबा लेल।
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