|| निर्माण मिथिला के ||

यौ जी एखनो कि सोचैछी ,
बेर-बेर किय माथ पिटैछी !
रङ्गभूमिमे तान्डब्य मचल अछि ,
अहाँ कोना विश्राम करैछी ? [ १ ]

मिथिला जननी खूब कनैय ,
आखिसँ श्रवन नोर बहैय !
चारुदिस अक्रान्त छै सगरो ,
देखि ठहक्का लोग हसैय !! [ २ ]

नै जागब अहाँ अनर्थ भऽ जाएत ,
मात-पिता आन्हर बनि जाएत !
बाल-गोपाल नै सपरत कहियो ,
अपन जीवन नरक भऽ जाएत !! [ ३ ]

कोना रहब ई दाग लगौने ,
कोना जियब अहाँ माथ झुकौने !
चुरुवाभरि पानिमें डुबि मरब तब ,
दुश्मन रहत छाती फुलौने [ ४ ]

कमर कसु भूमि बचाबु ,
हिजरासभके नाच नचाबू !
धर्मसंकटके घडी आबिगेल ,
जान जाए पर बचन निभाबू !! [ ५ ]

छी मैथिल तऽ अहाँके आन मिथिलाके ,
खुनसँ पैघ अछि शान मिथिलाके !
अपन शरीर खण्डित भऽ जाए मुदा ,
नै आब देबै कोनो आच मिथिलाके !! [ ६ ]

आबू मिलि सब सपत खाइछी ,
इर्श्या-द्वेश छोडि एक भऽ जाइछी !!
करैछी नव-निर्माण मिथिलाके ,
दुनियाँमे स्वायत प्रदेश कहाइछी !! [ ७ ]
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