मैथिली लप्रेक ~ सुरज के पहिल प्रेम


माघ महिना, शनि दिन चारुदिस घोकसी आ धोनही लागल रहैक । एहनमे सीरक,बलैंकेट आ घुरसऽ बाहर निकलबाक मनस्थितिमे किओ नै । तहने सुरजके मोबाइलमे फोन एलै । बजलै -" हेल्लो ! हम बजैत छी । अहाँसंग जरुरी बात करबाक अछि । तें कृपया ठीक १० बजे जानकी मन्दिरके मडबामे एब्बेटा करब ।"

ओकर कोयलसन बोली सुनिते सुरज खुशीसऽ गदगद भऽ गेलै आ घडी दिस देख' लगलै । फेर कि ! ओ त १ घन्टा पहिनहि मडबा पहुंच गेलै । बाट जोहैत-जोहैत १० बजलै । ओ अएलीह ।दुनू बैसलै। वार्तालाप शुरु भेलै । ओ कहलकै-" आब हमरा बिसरि जाऊ ।हम ककरो दोसरके होब' जा' रहल छी । चढिते फागुनमे हमर विवाह तय भऽ गेल अछि । तें अहाँके बस अन्तिम भेट लेल बजेलौं । मोनभरि हजारो सपना आ ढाकीभरि प्रसन्नता ध' लौने सुरजके हृदयपर पहाड खसि पडलै । सबटा सपना जेना सकनाचुर भऽ गेलै । ओ सोच' लागल -" ४ साल पहिने अही जनकपुरक जानकी मन्दिरके प्रांगनमे, अही मडबामे कामिनीक' प्रेम प्रस्ताव आ ओहि दिनसऽ ओकरे साथ निरन्तर चलैत आबि रहल अपन प्रेम कहानी आ एक दोसर संग जिनगी बिताएब साँचल रंगीन सपनाक बारेमे । मुदा छनभरिमे ओकर ओ सपना कोनो समुन्द्री छाल जकाँ बहि गेलैक । एक त जाडक' मौसम रहै दोसरमे ई वार्तालाप । सुरजाके मोनमे बुझू जे आओर बेसी कबकबी पैदा क' देलकै । एम्हर कामिनी "बाइ" कहिक' आँखिसऽ ओझेल होब' लगलै । तहने नै जानि किए ? मुदा सुरजाक| आँखिसऽ नोरक धार बह' लगलै । सुरजा अस्गरेमे हुचकि-हुचकिक' जोर-जोरसऽ कान' लगलै ।