मन रहत कारी तऽ माटि रेबारात ।
दिनेमे अन्हरिया राटि रेबारात ।।
टुटि परब अन्केटा भोजपर जखन,
सभहा बीचमे सबहक जाएत रेबारात ।।
नै करी हरदम जिद्ध अपनेटा बातपर
नै तऽ मुह्लगुवा करताइत रेबारात ।।
नुका चोराकऽ बनब जौ लाल बुझक्कड
हे महा कविके ओ पाति रेबारत ।।
चुपचाप रहब जौ अहाँ अपने देशमे
सत्ता लोभिकऽ सन्तान, बियाइत रेबारात ।।
भागु नै देख मिता घरकऽ समस्या
बाहरोमे डिबिया बुताइत रेबारात ।।
रसियाके बातपर जौ देबै नै धियान
घर घरके उलहन सिकाइत रेबारत ।।
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