गज़ल ~ सय बेर मरि - मरिक


सय बेर मरि - मरिक', एकबेर जीयके मजा अल्गे !
हँसी बाँटि - बाँटि दोषरमें नोर पियके मजा अल्गे !!

निर्दोष प्रेममें विश्वाश घात केनीहार सब संग !
धोखा खाइयोक' अपन दिल सियके मजा अल्गे !!

देखाबटी नेहमें बाट जोहैत ककरो ओ एकदिन !
अपनाके समहारि छनमें रोकि लियके मजा अल्गे !!

सजाक' बरातके निकाहमें तऽ घनेरो हुए उलझन !
समयके झेलमें एक चुटकी सेनुर दियके मजा अल्गे !!
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