|| देश प्रति स्नेह ||


आई
निंदबासन रात्रिमे
अद्भुत
सपन देखलौं  ।
बिचित्र रुपमे
एकटा नारी
आ हाथमे
कफन देखलौँ  ।।
कुछ लोक
ओकरा पछाडी
रंग बिरंगकें
झण्डा लेने
अवाज लगबैत
अबैत छलै  ।

उ नारी
कनैत कनैत
भगैत छलै  ।।
इ दृश्य देखि
हमर मन
बिभोर भ'गेल

हम बाजि देलियै ।
अहाँ पाछु
अतेक लोक किय ?
अहाँ हाथमें
कफन किय ?
अहाँ के छी ?
हम अहि
ब्रह्माण्डकें
एक कोनामे
अपन अस्तित्व
कायम कैने 
बहु जाती
बहु धर्म
बहु संस्कृतिमे
रमिरहल
अहि दुनियाके
एक मात्र
दासीबिहिन

स्वतन्त्र लोक छी ।।
हमरालँ
अचल
सम्पत्ति अछि ।
हमर
एक एक
कणकें
अलग महत्त्वसँ
दुनिया चिन्हिरहल अछि ।।
हम
पृथ्वी लोकमे
सभसँ उच्च शिरसँ
चिनहायत छी ।
हमर
खेतकें दाहर
कहुवो बहैत पानि
मात्र अछि
मुदा
किन्कोलेल
अमृत सम्मान छी ।।
मुदा...अपसोच !!
इ हमरा
पछाडी पडल
सभ हमरे
संतान अछि ।
किन्कोमे किन्कोसँ
मेलमिलाप नहिं अछि ।।
आपसी लडाईमे
सभ ब्यस्त छैक ।
कोई जातिकें नाम पऽ
कोई किन्को
पहिरनकें मजाक
बना कऽ
कोई किन्को
भाषा
संस्कृतिकें
नाटक बनाकऽ
यहाँ तक कि
छालाकें रंग
हिसाबे
आपसी भेंद भावमे
झगडी रहल छैक ।
अहि
लडाईमे
हमर बहुत
संतान मरि गेल
आब हमरा
शंका लागिरहल य
कि
इ सभ
हमर संतान
हमरा
टुक्रा टुक्रा
करि धनकैत
चितामे
सवाह नै क दे ।
तँहि लेल
हम
कफन
नुकाबैत
ओइ वीर
बेटा लँ
भागिरहल छी ।
जे अहि
राक्षस सन
लोककें मारीक
इ कफन ओरहा
हमरा
आत्माकें
शान्ती दियाबि सकत ।

हमरा
समुचा सम्पत्ति पऽ
फिर अपन
पहुलके ताजकें
साथ
अपन
शिर दुनिया आगु
फिरसँ उच्च राखे  ।।
अचानक हम
चेहा उठलौं

बुझिगेलियै
के छलिं
ई सुन्नर नारी
के छलीह -
सात समुन्द्र पार
एहि मरुभूमिक देशमे
हमरासँ दूर
अपनत्व सँ तडैप रहल
हमर मातृभूमी छलीह
हमर देश छलीह
जे, अपन उद्दार लेल
हमर सपना आयल छलीह ।
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