मैथिली लप्रेक ~ डेग सँ डेग

                                             __✍  बाल मुकुन्द पाठक
पूबरिया बाधक एकपएरिया धेने दुनू बढ़ल जाइत छल ।
आगां - आगां विक्रम, पाछां सँ कृति दुनूक बढ़ैत 
एक - एक डेगक संग गाम पाछां छूटि रहल छलै ।
"बूझलए कृति ! जहिना दू लोक एक संग एहन बाट पर
सहज ढंग सँ नहि चलि सकैत अछि । चलबाक लेल स्पेस
कम पड़ि जाइत अछि । सदिखन बाट सँ निच्चा
उतरबाक डर रहैत अछि । जिनगी सेहो, एकपएरिया
जेना छैक एनमेन, एहि पर सेहो एक संग चलब बड़
कठिनाह होइत छै । एहू मे दू लोककऽ बीच नीक
अंडरस्टेंडिंग होएब ओतबे जरूरी होइत छै । जतेक चलबाक
लेल स्पेस बनाएब, नहि तऽ कखनो जिनगी सेहो पटरी
सँ उतरि सकैत छै । "
विक्रमक एतेक कहब भेलै, कि आगां बढ़ि कृति ओकर
हाथ पकड़ि लैत अछि आ डेग सँ डेग मिला दुनू ओहि
एकपएरिया पर आगां बढ़' लगैत अछि ।