जीनगीमें की छै,
दर्द छै पीड़ा छै !
हँसी की, खुशी की,
गरीबकें एहने कथा छै !!
जीनगीमें की अप्पन,
अपनों अखन बेपता छै !
साँचे कहैत छि हम,
गरीबके एहने कथा छै !!
जीनगीमें की मिलन छै,
केवल बिरहकें व्यथा छै !
समझु की, भुझू की,
गरीबकें एहने कथा छै !!
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__.✍ प्रेमी रविन्द्र
रामगोपालपुर, महोत्तरी (नेपाल)