|| अहाँक जे कहि नई सकलौं ||

अहाँके आद अछि ओ दिन
आईसँ ठिक १२ बर्ष पहिने
आजुके दिन भेल छलै
निबन्ध लेखन प्रतियोगिता
२५० शब्दमे
तँहिमे धन्यवादके पात्र बनल छली हम
अहाँ तरफसँ

अहाँ प्रथम भेल छली
हमर लिखल निबन्धसँ
अहाँ लेल ओ दिन स्मरणटा मात्र भऽ सकैए
मुदा, हमरा लेल ओ दिन
अवीसर्णि अछि  ।

ओ दृश्य अखनो
हमरा आखिँमे खैंक बनिक गरिरहल अछि
साओनक महिना

मुसरेधार बर्खा
ताहि उपर सिहीर-सिहीर बहैत वसन्तक हावा
बिचला चौरीमे आमक गाछ त'र
कठुवाईत हम छली
किए कि हम अपन छता अहाँक ददेने छलौं
हम बिझले छी ताहि बहने
अहाँक स्पर्श कैलहा हावा
हमरा छुबिते गर्मिया दैत छल

सिहरा दैत छह पुराके पूरा देह
मुदा, तैओ हम अहाँक किछ नई कहि सकलौं

अहि १२ बर्खक लम्बा त्यागमे
कैरतितँ ईन्द्रेनिक सात रंग एक भऽ सकैत छलै
कैहतितँ समुन्दरक लहर सदा-सदाके लेल शान्त भऽ सकैत छलै
हम हिम्मतो छुटैलौं किछ करबाक
किछ कहबाक
मुदा , कहि नहि सकलौं
हँ, आई कहब जे अहाँक कहि नई सकलौं
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