बिन्ती हे माँ सरस्वती, जिनगी हमर समहारि दिय
हम अज्ञानी ज्ञानक दिप अहाँ, अहिबेर बाइर दिय
आखिँ देखतो आँन्हर छी, अहाँक आशिष बिनु
कोन जुक्ति लगाक हम इ अहाँ जगके चिन्हु
माँ दयाक हमरो हाथमे ज्ञानक रेखा, पाइर दिय
भटकल हम बुद्धि बिनु, स्वार्थक साथ धैने छी
माफ कऽ दिय हे माँ शारदे, पापो कतेको कैने छी
हमरा मनसँ हे बिणा धारणी स्वार्थक, भाव जाइर दिय
हम अज्ञानी ज्ञानक दिप अहाँ, अहिबेर बाइर दिय
आखिँ देखतो आँन्हर छी, अहाँक आशिष बिनु
कोन जुक्ति लगाक हम इ अहाँ जगके चिन्हु
माँ दयाक हमरो हाथमे ज्ञानक रेखा, पाइर दिय
भटकल हम बुद्धि बिनु, स्वार्थक साथ धैने छी
माफ कऽ दिय हे माँ शारदे, पापो कतेको कैने छी
हमरा मनसँ हे बिणा धारणी स्वार्थक, भाव जाइर दिय
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