गज़ल - हँसैत - हँसैतमें

हँसैत - हँसैतमें छीन लैत अछि भत्ता !
फेरसँ जिनगीमें लाधि दैत अछि जत्ता !!

कहियो उच तऽ कहियो नीच कैह् के !
एक आपसमें लड़ाबि दैत अछि सत्ता !!

खेल - खेलमें हार भऽ जाइत अछि !
और बिना देखते काटि दैत अछि पत्ता !!

देखिकऽ असगर चलैत बिच बाट् पर !
काग जका नोचि लैत अछि कपड़ा-लत्ता !!

गुण्डाकऽ डंका बाजल सगरो दिन देखारे !
निहत्था उपर एत: चलाबि दैत अछि कत्ता !!

लेखक : एस के मैथिल
जनकपुर धाम, धनुषा ( नेपाल )
हाल : मुम्बई