गज़ल - चलु अन्तिम साँस धरि लडाइ लडब सङ्गी !!

चलु अन्तिम साँस धरि लडाइ लडब सङ्गी ।
अपन हक-अधिकार, ल एके रहब सङ्गी ॥

जतबे दमन-शोषण, ततबे अन्याय भऽ रहल 
शपत मातृभूमीके, जुनि आब सहब सङ्गी ॥

जनम लऽ ऐ धर्तिपे,गर्व करै सन्तति अपन 
इत्यहासके साहित्य एहेन कऽ गढब सङ्गी ॥

असन्तुष्टीके ज्वाला धधकि रहल छै सगरो 
न्यायक खातिर मारब, चाहे मरब सङ्गी ॥

बगुलाके रुप छोडि, अजिङ्गर बनि आब 
एक-एकटा पापीके छातीमें डँसब सङ्गी ॥

लेखक : विद्यानन्द वेदर्दी 
राजविराज, सप्तरी ( नेपाल )