गज़ल ~ चुटकीयो भरि


चुटकीयो भरि लाज-शरम करितौ,
सोचि-विचारि कोनो करम करितौ॥

मारैएके छल तऽ जिआ जिआ किए,
जमीन भित्तर जिन्दा दफन करितौ॥

जौ होइतै ओ करेजामे दिल अहाँके,
दुरीक आँच सँ मन नै गरम करितौ॥

नित सपनेमे आबैत रहौ सहए सही,
आँखि आगु एबाक नै भरम करितौ॥

"विद्यानन्द" सँ प्रेम करि केलौ पाप,
"राधा" प्रेमगंगेमे नहा धरम करितौ॥
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