गज़ल ~ जे निज स्वार्थ में डुबल अछि

जे निज स्वार्थ में डुबल अछि,
हुनका एतबे बुझल अछि !!

भेटत कहाँ सँ की की हमरा,
ताहि जुगाड़ में घुसल अछि !!

सायत भेटतैन नहि आब,
तें तऽ आइ वो रुसल अछि !!

चलब भऽ गेल अते मुस्किल,
सगरो बाट जे खुनल अछि !!

अहिने लोक'क कारण आइ,
समाज में बिख घुलल अछि !!