गज़ल ~ हमर मुन्द्रिका

छवि : सुनिता 
बिरानके अपना देखैत छी हम
बिपनेमे सपना देखैत छी हम॥

ओ एतै आसमे दुआर पर बसि,
नै घर,नै अंगना देखैत छी हम॥

सोचैछी दाग दिलकेर झाँपि ली,
कतहुँ नै झपना देखैत छी हम॥

ओकर हाथमे हमर मुन्द्रिका कहाँ?
अनकरक कंगना देखैत छी हम॥

मेटाबितौ बिगरल भागक रेखा,
कहाँ ओ मेटौना देखैत छी हम?
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__.✍ विद्यानन्द वेदर्दी 
राजबिराज, सिरहा (नेपाल)