गज़ल ~ अप्पन रूप देखा देलौं

बिनु बजेनें चलि एलौं अहाँ ।
अप्पन रूप देखा देलौं अहाँ ।।

हम अनपढ गवार संगे
बिनु बुझ्नैं प्रेम कऽ लेलौं अहाँ ।

रस्ता भटकि रहल यात्रीके
सु-मार्ग दर्शन करेलौं अहाँ ।

निराश फैलिचुकल मनमे
आशाके किरण जरेलौं अहाँ ।

मझधारमे अटकल नाहके
खेभके कन्छरि लऽ गेलौं अहाँ ।

समाजक कुभेस के चिरके
प्रेमक झण्डा फहरेलौं अहाँ ।

अन्त सबके आँखिमे नोर दऽ
संसार छोडिकऽ बिलेलौं अहाँ ।
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